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सुशीला कार्की, नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रच दिया: नेपाल में खुशी की लहर

नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में सुशीला कार्की की नियुक्ति: घातक प्रदर्शनों और राजनीतिक संकट के बीच ऐतिहासिक मोड़

नेपाल में एक ऐतिहासिक घटनाक्रम घटित हुआ है, जब सुशीला कार्की को नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। यह परिवर्तन उस समय हुआ जब नेपाल में राजनीतिक अशांति चरम पर थी, जो सोशल मीडिया पर लगाए गए सरकार के प्रतिबंधों के कारण और भी बढ़ गई थी। इसके परिणामस्वरूप, देशभर में घातक प्रदर्शन हुए, जिनमें 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई। यह प्रदर्शन जल्द ही भ्रष्टाचार, राजनीतिक अभिजात वर्ग और देश में बढ़ती संपत्ति असमानता के खिलाफ एक जन आंदोलन में बदल गए।

प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया और काठमांडू में संसद सहित कई सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया। यह एक निर्णायक मोड़ था, जो नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य में गहरे बदलाव का संकेत था। शुरुआत में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के खिलाफ उठे विरोध ने जल्द ही व्यापक राजनीतिक बदलाव की मांग को जन्म दिया। खासतौर पर “नेपो किड” अभियान ने राजनेताओं के बच्चों द्वारा भव्य जीवनशैली जीने की आलोचना करते हुए इस विरोध को और हवा दी।

सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध को सोमवार को हटा लिया गया, लेकिन तब तक प्रदर्शनों का जोर कम नहीं हुआ था। यह आंदोलन इतना तीव्र हो गया था कि काठमांडू में संसद भवन को आग के हवाले कर दिया गया, और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल के साथ समझौता हुआ, जिसे नेपाल सेना प्रमुख ने मध्यस्थता की। इसके परिणामस्वरूप, सुशीला कार्की को नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।

सुशीला कार्की, जो एक ईमानदार और सक्षम न्यायाधीश के रूप में जानी जाती हैं, अब इस संकटपूर्ण समय में देश की जिम्मेदारी संभालने जा रही हैं। उनके पास कानूनी विशेषज्ञता और साफ-सुथरी छवि है, लेकिन उनकी नियुक्ति नेपाल के राजनीतिक संकट को हल करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करेगी। उन्हें कानून व्यवस्था को फिर से स्थापित करना होगा, संसद और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी भवनों को फिर से बनवाना होगा जो प्रदर्शनों के दौरान नष्ट हो गए थे, और साथ ही साथ जनरेशन Z के प्रदर्शनकारियों की उम्मीदों को पूरा करना होगा, जो देश में गहरे राजनीतिक बदलाव की मांग कर रहे हैं।

इसके अलावा, उनका यह भी काम होगा कि वे उन लोगों को न्याय दिलवाएं, जो प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं। देश में अगले साल 5 मार्च को चुनाव होने हैं और सेना अभी भी सड़कों पर गश्त कर रही है, जिससे सुशीला कार्की के नेतृत्व की परीक्षा होगी। उनके कार्यकाल के दौरान राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना और नए चुनावों की दिशा में एक साफ-सुथरे और पारदर्शी प्रक्रिया को लागू करना एक बड़ी चुनौती होगी।

सुशीला कार्की का व्यक्तिगत इतिहास भी कुछ विवादों से जुड़ा हुआ है। वे नेपाल की मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एक बार महाभियोग की प्रक्रिया का सामना कर चुकी हैं। हालांकि, वे इस समय में एक ईमानदार और निष्पक्ष नेता के रूप में पहचान रखती हैं। इसके बावजूद, उन्हें प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के दोषियों को न्याय के दायरे में लाने का भारी दबाव होगा।

उनकी नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति नेपाल के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, क्योंकि यह देश के आंतरिक विभाजन और सरकार में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की आवश्यकता को स्पष्ट करती है। इस कठिन समय में, उनका नेतृत्व देश के लोकतांत्रिक प्रगति और संविधानिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

कुल मिलाकर, सुशीला कार्की का नेतृत्व नेपाल के लिए एक नई दिशा की ओर एक कदम है, जहां युवा पीढ़ी की उम्मीदें और पुरानी राजनीति के बीच संतुलन बनाने की चुनौती सामने होगी। यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जो आने वाले समय में नेपाल की राजनीति को आकार देगा।

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